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रामचरित मानस

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दोहाः

सिव अज पूज्य चरन रघुराई। मो पर कृपा परम मृदुलाई॥

अस सुभाउ कहुँ सुनउँ न देखउँ। केहि खगेस रघुपति सम लेखउँ॥2॥


भावार्थ:-जिन श्री रघुनाथजी के चरण शिवजी और ब्रह्माजी के द्वारा पूज्य हैं, उनकी मुझ पर कृपा होनी उनकी परम कोमलता है। किसी का ऐसा स्वभाव कहीं न सुनता हूँ, न देखता हूँ। अतः हे पक्षीराज गरुड़जी! मैं श्री रघुनाथजी के समान किसे गिनूँ (समझूँ)?॥2॥


* साधक सिद्ध बिमुक्त उदासी। कबि कोबिद कृतग्य संन्यासी॥

जोगी सूर सुतापस ग्यानी। धर्म निरत पंडित बिग्यानी॥3॥


भावार्थ:-साधक, सिद्ध, जीवनमुक्त, उदासीन (विरक्त), कवि, विद्वान, कर्म (रहस्य) के ज्ञाता, संन्यासी, योगी, शूरवीर, बड़े तपस्वी, ज्ञानी, धर्मपरायण, पंडित और विज्ञानी-॥3॥


* तरहिं न बिनु सेएँ मम स्वामी। राम नमामि नमामि नमामी॥

सरन गएँ मो से अघ रासी। होहिं सुद्ध नमामि अबिनासी॥4॥


भावार्थ:-ये कोई भी मेरे स्वामी श्री रामजी का सेवन (भजन) किए बिना नहीं तर सकते। मैं, उन्हीं श्री रामजी को बार-बार नमस्कार करता हूँ। जिनकी शरण जाने पर मुझ जैसे पापराशि भी शुद्ध (पापरहित) हो जाते हैं, उन अविनाशी श्री रामजी को मैं नमस्कार करता हूँ॥4॥


दोहा :

* जासु नाम भव भेषज हरन घोर त्रय सूल

सो कृपाल मोहि तो पर सदा रहउ अनुकूल॥124 क॥


भावार्थ:-जिनका नाम जन्म-मरण रूपी रोग की (अव्यर्थ) औषध और तीनों भयंकर पीड़ाओं (आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक दुःखों) को हरने वाला है, वे कृपालु श्री रामजी मुझ पर और आप पर सदा प्रसन्न रहें॥124 (क)॥


* सुनि भुसुंडि के बचन सुभ देखि राम पद नेह।

बोलेउ प्रेम सहित गिरा गरुड़ बिगत संदेह॥124 ख॥


भावार्थ:-भुशुण्डिजी के मंगलमय वचन सुनकर और श्री रामजी के चरणों में उनका अतिशय प्रेम देखकर संदेह से भलीभाँति छूटे हुए गरुड़जी प्रेमसहित वचन बोले॥124 (ख)॥


चौपाई :

* मैं कृतकृत्य भयउँ तव बानी। सुनि रघुबीर भगति रस सानी॥

राम चरन नूतन रत भई। माया जनित बिपति सब गई॥1॥


भावार्थ:-श्री रघुवीर के भक्ति रस में सनी हुई आपकी वाणी सुनकर मैं कृतकृत्य हो गया। श्री रामजी के चरणों में मेरी नवीन प्रीति हो गई और माया से उत्पन्न सारी विपत्ति चली गई॥1॥

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1 Comments

shweta soni

21-Jul-2022 02:04 PM

Bahut badhiya

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